طفرة العشق ... بنطفة الحدس من ديوان العشق عند بحيرة تشايكوفسكي - برادة البشير عبدالرحمان

استهلال
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قد تشيخ الأوتار...أوتار حنجرة بخامة ساحرة...قد تتيبس أوتار رباب بطول استعمال، أو بإهمال ...والرخام لا يصمد تحت رحمة صبية شلال…عدا العشق...! عدا الحدس...! في مخيلة رسام...كمهجة شاعر...الحدس لا ينطفئ...لا يبيض فكيف له أن يجف ...؟
ليس للزمن قدرة على قضم عواطف العشاق...لا سلطة للزمن على الحدس...على زمزمة الشاعرية...كالعواطف...! الفيض لا يقف عند " عتبة "...!
الفيض شلال ماء لا يعجز عن إيجاد شقوق للإطلالة...حاملا معه نكهة المعادن...والحرارة...التي يعانقها في سياقات الحياة.
ليس هناك زمن جميل...وآخر رديء...في فضاء الشاعرية…لا لشيء إلا لأن الشاعرية...كأي حساسية جمالية … تطل من خارج الزمن...الشاعرية لا تحتويها سبحة كرونوس...فمدار هاتيك السبحة عند الهنود...للترتيل... غايته ترميم ذات منكسرة...
أما في الشاعرية...فالأمر يحيل على طاقة الإبداع ...ما كان الخلق ترديدا...ولا كان المبدع مريدا...عند عتبة " شيخ "...أو " آغا "...
الإبداع طفرة خارج مدار " السبحة "...و كرودوس عاجز عن عد صبيب " نون " الحياة كنون وجداني…في" الهنا " لا سياجا...ولا سدا...يحاصر ينابيع فورة الشعر... لحظة الشوق...أوان الإشراق...لحظة عناق الكينونة...في الصميم…
برادة البشير فاس في: 06/06/2019
 
 
 
 
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طفرة العشق ... بنطفة الحدس
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العشق...طفرة الحياة...!
نفحة...طاقة التكوين...!
في الزهر ...والطير...!
كالإنس … كنطفه…!
كمضغه...ما أن دق...!
القلب في عجينة...الجنينْ...!!
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هناك...هنالك...!
قبل دهر أو يزيد...!
كانت الأرض...بلا ورود...!
دون...أزهار...!
هنالك...كان للجمال في " أذن "
الغيب...!
رنين...ورنينْ...!
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منذ الفتق…
أطلت...البشاعة تتهادى...!
على سطح...الأرض...!
مكسوة...ذمامة وعنفا...!
عنف...ينفث نارا…
كلسان...تنين...!!
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هنالك...قبل ميلاد …
الثقوب السوداء...!
قبل إطلالة... كرونوس
من فجوة...المدارات...!
كانت المروج...دون طلع...!
عقيمة...بلا لقاح…
كيان...عنينْ...!!
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هنالك...قبل إطلالة النعومة...
من نسيج التناغم...!
هناك...كانت الطيور…
بلا ...ريش...!
الكل...يأكل الكل...!
دورة...فزع…
بالفضاء...والكهوف...!
" أحضان " تنسخ...العرين
بالكمينْ...!!
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هنالك...قبل ميلاد البدر..!
لم تكن ...شاعرية تداعب
منازل...القمر..!
الأنوثة...لم تطل بعد…
من ثنايا...المخاض..!
مخاض...يداعب...
آلهة...التينْ...!!
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هنالك...قبل انقشاع…
السديم...!
قبل نطق...لفظة " التكوين ...!"
فميلاد...الكينونة …
لا كميلاد...الوليد...!
لا كينونة...دون " ماء "...
مَعينْ..!!
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هنالك...كون بلا بسمة..!
بلا دهشة...طفل ببريق
العين..!
إطلالة الروعة...تحتاج
طفرة..!
لا تُشق...غلالة البشاعة
سوى...بمرور ملايين…
السنينْ..!!
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هنالك...قبل عناق الكواكب
لآتون..!
قبل صياغة الأفلاك...
بسحر الجذب...كالعشق..!
لم يكن بالأرض...نحل
ولا فراشات…
لم ترفرف...بعد
طيور الجنة...!
فلا إيقاع...ولا تغريد...!
الكل...للعنف رهينْ...!!
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هنالك...قبل أن تنسج الأرض
مظلة...الأوزون...!!
كانت الأشجار...دون زهور...!
دون...أسرار...البذور...!
بغياب...سحر الإخصاب…
هل من...مُعينْ...!؟
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دون أزهار...دون حبيبات
اللقاح..!
ما الحاجة...لفراشات …
ترشف طلع الخصوبة..!
هنالك...فرحة الجمال....
كانت...في " علم "...
ال" جِينْ "..!!
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هنالك...قبل أن " تحلم "
الأرض…
بدفء...العشق..!
ببسمة من كينونة …
الجمال..!
في الورد...ونعومة…
الفتنة..!
لم يكن هناك... حواء…
كي ...تَهدينْ..!!
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كانت...هناك دناصير…
وعقبان...بأنياب...
بلحم...مكشوف تطير...!
تثير...في النفس رعبا
بدل ...رشاقة التحليق...!
ناظرها…
عبوس...الجبينْ...!!
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من أجل... ذلك...!
عند ميلاد...مقاييس…
العذوبة...!
أمرت...آلهة الجمال
بمنع...البوم كالخفافيش...!
من التحليق...!
قبل إرخاء...الليل
سدول...الحلكة...!
للكآبة...تأبينْ...!!
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هنالك...حيث ألسنة
اللاَّفا...تلتهم الأكسجين..!
تضخ...غمامة كاربون..!
غمامة...حرمت السما بهاء
أطياف...قزح...!
فلا شتاء...ولا طل
أو رذاذ...ينسي الطبيعة
قساوة...الأنينْ...!!
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هنالك...مذ كانت الخشونة
تمنع...النعومة من الإفصاح...!
حليفة...براكين...!
رفيقة...شهب " غليظة "..!
ترجئ...إطلالة الإنسان…
من خوخة...الروعة...
إلى...حينْ..!!
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هنالك...منذ ملايين …
السنين..!
وأمنا الأرض...تُعَدِّل
المدار...!
تحلم كفتاتي…عبر السنين
بفضاء… ينسج الجمال…
بنكهة أحلام الصبايا..!
بحضن...أمينْ..!!
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هنالك...في خضم…
مد " الخير"...وجزر…
" الشر"..!
عند ألم مخاض...كينونة
تحلم...بموجود جديد...!
حلم انبثاق...طاووس ...
بجعة…تقطر ...أنوثة...!
من صلب بشاعة دناصير...
بتنافر...لا يَغوينْ...!!
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الحق...يؤخذ...ولا يعطى...!
والجمال...حق و حقيقة...!
حق أمنا الأرض…
بعد طول انتظار…
لانقشاع...غلالة البشاعة...!
بشاعة...لا تسمح برسم النجوم
في لوحة السماء...!
سناءٌ...للطارق مُعينْ...!!
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هنالك...جذبت أرضنا...
في غفلة...نزوع البشاعة
لدورة " الشر"..!
هناك...أقبل نيزك عملاق...!
بسرعة...الصوت...!
فبَخَّر " شرا "...مذ كان
عند قوى...اللطف…
ضنينْ...!!
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هنالك...التهمت...الصدمة...!
أوراق...سِفر الخشونة...!
وكست أمنا الأرض…
بغيوم...دخان ...!
منعت فائض حرارة…
أوتو...!
فاعتدل الجو...وأطل الجمال
من شقوق...الطفرة...!
بريشة...التلوينْ...!
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فالحرارة...سليلة الحريق...!
في لحظة…
تلتهم... الرطوبة...!
في برهة...تبتلع النعومة...!
تأتي...على اليخضور...!
فلا سماء...حبلى بطل...!
فكيف تروي...المروج...؟
وبإحساس...الجمال…
تروينْ...!!
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قبل...حصار بحر…
القَزوين...!
قبل مجيء...الهند من فج
عميق...!
تتهادى...كعذراء مياسة...
بريشة التكوين...!
ترسم...الهملايا…
على ...حافة الصينْ...!!
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سبتت...أمنا الأرض…
عَمدًا...!
في ظل غيمة " الصدمة "..!
لتجعل " المجال " …
" بردا...وسلاما..! "
لتنشئ...عصير الحياة…
عصير...يصوغ جمالا…
يشكل...دهشتي…
ويُحْيِينْ..!!
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هنالك...تآمرت التلال…
لسجن...بحيرة الباَيْكَالْ…
بتواطؤ...جبال القوقاز ...!و الأورال
هنالك...لقنت...الطبيعة…
درس " الكمون "...للبذرة
لزاحف...ودب...!
دب...أهدى " نونوس "...
هوى...اللعب ورشاقة…
الدعابة...!
للبنات...والبنينْ..!!
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فصدمة نَيزَك...كقدف ذرة...!
يبيض...عنصرا جديدا...!
لم تحلم به الطبيعة..!
والمجادل...يسأل ماندلييف...!
كم أغنى خيال ...الإبداع...!
جدول...الكيميا...!
لم تحلم بها أمنا...الأرض...!
قبل ميلاد العناصر...!
في عجين…" نون "...
يدغدغ … الطينْ...!!
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لا طفرة...دون صدمة..!
ولا صدمة...دون منعطف..!
فصدمة...الأرض، فتحت ينابيع
الخلق...!
أبدعت…" زلال "الطلق…
بشرى...مجيء الشوق…
شوق...يهش على الخيال…
ببسمة... الإشراق...!
إشراق...بالشعر يَبْنِينْ.!!
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هنالك...الصدمة فجرت
شلالات...التحول..!
مسارات...الطفرة..!
أعادت...تشكيل شرائط ...
الجينات..!
فكانت... الأنوثة..!
وأقبلت...الخصوبة مزهرة..!
ندية...ببذور الإخصاب..!
تطفح ...بالبيض، والمبيض...!
وروعة جميل…
يأويك...وبعينكِ
يَأْوِينْ..!!
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هنالك...انبثق الشوق..!
فعانق…" الحي " القضيب..!
وكسا الجمال...الشجر والطير..!
ولف الأنوثة...برقة الزهور...!
وكساها...بفستان النعومة...!
وضمخها...بسحر التناسب...!
هنالك...فاض الوجدان…
معلنا...بيان الإحساس...
بالحنينْ..!!
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فأطل...التعاطف كالفنيق..!
من رماد...العنف والقسوة…
ونشاز...الطنين...!
فأقبل...العشق يتهادى…
على صفحة بحيرة...الوجدان
معلنا...بيان الحب...!
للحياة...للأنوثة...والإنسان...!
بيان...يهلل للرومانسية…
بنصر...مُبينْ.!!
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هنالك خطا...العشق...!
في درب ...الهوى يقرأ
ما قبل الصفحة ...الأولى...!
خطوات...تتهجى أبجدية
العيون...!
كترجمان...لشغاف القلوب...!
هناك...تجني حوائي…
عسل العشق…
حين ...تَجنينْ..!!
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لا قطوف...في ظل سقيفة
العشق...!
دون إيقاع يفيض…
من سيمفونية...تشايكوفسكي...!
تذيب...الفؤاد…
بانتصاب...حلمة النهد...!
تصهر...حنان الأمومة…
في وصال ...الأنوثة...!
للمشاعر...تجديد…
وتَحْيينْ..!!
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الأنوثة...حضني..!
والعشق...حضور عيني..!
وسدول شَعر...الدفء..!
يحكي...ملحمة العشق…
في روي...وألف روي...!
قبل ميلاد...التدوينْ..!!
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هنالك...على ضفاف…
وادي ...النون..!
" أفسل "...الحسون…
غنائية...العشق...!
في موسيقى...الشعر...!
فتراقصت...خلايا الشوق
والحنين...بلون الورد…
على ...الخَدينْ..!!
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فتفاعل...الكون..!
مع...الكينونة..!
بلحن...يهش بالناي…
على مقام...الأنوثة..!
بلطف...أَدري كنهه…
كما...تدرينْ..!!
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لطف العشق…
بتوءم ...اللطف لطيف..!
لحياة...العشاق...تلطيف..!
يوحي للطفولة...بروعة
التعاطف...!
تعاطف...يُغَنِّج ليلاي…
ويدلل...طفلتي...!
فترسم...بعين البراءة…
دهشة...!
دهشة...تنسج مخيلة…
التكوينْ...!!
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